Bhopal News: भोपाल के इस्लाम नगर का नाम हुआ जगदीशपुर:यह क्षेत्र गढ़ा-मंडला जबलपुर के गोंड राजा संग्राम शाह के बावन गढ़ों में से एक था, इसलिए यहां पर एक गोंड महल भी है। गोंड शासन के बाद यह गढ़ और किला देवड़ा राजपूतों के अधीन रहा..

भोपाल से 14 किलोमीटर दूर ऐतिहासिक धरोहर को समेटे है खूबसूरत गांव। 17वीं शताब्दी में बने किले को देखने यहां देश-दुनिया के लोग पहुंचते हैं। कल यानी बुधवार तक इसका नाम इस्लाम नगर था। अब यह फिर से अपने पुराने नाम जगदीशपुर से पहचाना जाएगा। केंद्र सरकार ने गांव का नाम जगदीशपुर करने की हरी झंडी दे दी है। राज्य सरकार ने भी बुधवार को नोटिफिकेशन जारी कर गांव का नाम बदलकर जगदीशपुर कर दिया है।  जगदीशपुर से इस्लाम नगर बनने की रोंगटे खड़ी करने वाली कहानी है। औरंगजेब की सेना के भगोड़े सैनिक दोस्त मोहम्मद खान ने 308 साल पहले इसका नाम इस्लाम नगर किया था। इसका नाम वापस जगदीशपुर करने की फाइलें 30 साल से चल रही थी।  पहले जानते हैं जगदीशपुर कैसे इस्लाम नगर बना… दोस्त मोहम्मद खान मंगलगढ़ का खजाना लेकर बैरसिया आया था  दोस्त मोहम्मद अफगानिस्तान के खैबर के तीराह का रहने वाला था। 1696 में वह उत्तर प्रदेश के जलालाबाद आ गया। वह इतना क्रोधी स्वभाव का था कि छोटी सी बात पर हुए झगड़े में उसे ही शरण देने वाले अमीर जलाल खान के दामाद को सरेआम मार डाला। वहां से भागकर वह करनाल और फिर दिल्ली चला गया। यहां मुगल सेना में भर्ती हो गया। मुगल और मराठा युद्ध के चलते दोस्त मोहम्मद 1703 में मालवा आ गया। यहां उसने अपने हथियार आदि विदिशा के शासक मोहम्मद फारूख के पास जमा कर दिए और मामूली झगड़े के बाद उसकी भी हत्या कर दी। इसके बाद वह मंगलगढ़ में शरण पाने में सफल हो गया और वहां के महाराज-महारानी के साथ महल में रहने लगा मंगलगढ़ के महाराज की मृत्यु हो जाने पर दोस्त मोहम्मद ने मंगलगढ़ को भी लूट लिया और सारा खजाना लेकर बैरसिया आ गया। यहां भी अपने स्वभाव के अनुरूप उसने यहां के सूबेदार ताज मोहम्मद से पहले तो बैरसिया को लीज पर लिया और बाद में उसे भी धोखा देकर बैरसिया पर कब्जा जमा लिया।  अब बात जगदीशपुर पर कब्जे की…इतना खून बहा कि नदी का पानी लाल हो गया..  जगदीशपुर में 11वीं सदी के परमार कालीन मंदिर के पत्थर और मूर्तियां मिलती हैं। सम्भव है कि यहां परमार काल में मंदिर रहे होंगे। परमारों के उपरांत यह क्षेत्र गढ़ा-मंडला जबलपुर के गोंड राजा संग्राम शाह के बावन गढ़ों में से एक था, इसलिए यहां पर एक गोंड महल भी है। गोंड शासन के बाद यह गढ़ और किला देवड़ा राजपूतों के अधीन रहा। 1715 में दोस्त मोहम्मद खान ने जगदीशपुर पर आक्रमण किया, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। राजपूतों पर आक्रमण में असफल रहे दोस्त मोहम्मद ने अपने स्वभाव के अनुरूप षड्यंत्र का सहारा लिया। उसने राजपूत शासक देवरा चौहान को बेस नदी के किनारे सहभोज के लिए बुलाया। जब सभी देवरा चौहान समेत राजपूत मेहमान रात्रिभोज कर रहे थे, तभी तम्बू की रस्सियां काट दी गईं और सभी राजपूतों को हलाल कर दिया गया। कहते हैं कि इतना खून बहा कि नदी का पानी लाल हो गया और तभी से यह नदी हलाली के नाम से जानी जाने लगी। इस तरह धोखे से जगदीशपुर पर दोस्त मोहम्मद ने कब्जा कर लिया और उसका नाम बदलकर इस्लामनगर कर दिया।  (जैसा धरोहर संस्था की आर्कियोलॉजिस्ट पूजा सक्सेना ने बताया)  Photo..  इस्लाम नगर में हो चुकी हैं कई फिल्मों की शूटिंग इस गांव का बॉलीवुड से भी कनेक्शन है। किले के कारण यहां कई छोटी-बड़ी फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है। इनमें भूमि पेडनेकर की फिल्म ‘दुर्गामति’ प्रमुख है। इस फिल्म के पोस्टर में अभिनेत्री को जिस दरवाजे के सामने बैठा दिखाया गया है, वह गोंड महल का मुख्य गेट है।  चारों ओर सुरक्षा दीवार, किले में रहती थीं रानी इस्लाम नगर किले को घेर कर चारों तरफ से सुरक्षा दीवार बनी हुई है। इसे देखने के लिए पर्यटकों को मप्र सरकार के बनाए गए काउंटर से 10 रुपए प्रतिव्यक्ति का टिकट लेना होता है। पहले रानी महल है। प्राचीन समय में यहां पर रानी रहा करती थीं। इसके पास में चमन महल है। दोनों महलों के बीच सुंदर बगीचे देखते ही बनते हैं। किले के पीछे की तरफ नदी है, जिसका पानी प्रदूषित होकर काला हो चुका है। चमन महल के पीछे की ओर दोस्त मोहम्मद खां के दो बेटे यार मोहम्मद खां और हयात मोहम्मद खां का मकबरा है।  स्वागत बोर्ड आज भी जगदीशपुर का ही लगा है भोपाल के पास स्थिति यह गांव बैरसिया से सूखी सेवनिया के रास्ते विदिशा जाने वाले हाईवे के बाईं ओर है। सड़क पर दो बड़े बोर्ड लगे हैं, एक बोर्ड पर विधायक की तस्वीर के साथ लिखा है जगदीशपुर में आपका स्वागत है। दूसरा बोर्ड पर्यटन विकास निगम का है, जिस पर इस्लाम नगर की दूरी लिखी है। गांव की ओर दो किलोमीटर बढ़ने पर 17वीं शताब्दी में बना एक किला दिखता है, जो इस गांव की पहचान है। वर्तमान में यह पुरातत्व विभाग के अंडर में है। यह गांव किले के अंदर तीन हिस्सों में बसा है। किले का बाहरी हिस्सा छावनी है। इसके बाद मिडिल फोर्ट और कोर किला एरिया है। गांव में मकान दूर- दूर बने हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार इस्लाम नगर की आबादी साढ़े तीन हजार है।  नाम बदलने को लेकर गांव में भी चर्चा है। वन विभाग से रिटायर्ड मनोहर जैन किराने की दुकान चलाते हैं। जगदीशपुर का जिक्र करते ही कहते हैं- यही तो इसकी पहचान है। गांव के सभी लोगों की यही इच्छा थी कि पुरानी पहचान लौटे। गांव वाले भी चाहते थे जल्द नाम बदले, तनाव की स्थिति भी नहीं हालांकि गांव का नाम बदलने को लेकर सरकारी फाइलें 30 साल से चल रही थीं। एक सरकारी चिट्‌ठी के मुताबिक हूजूर तहसीलदार 19 अगस्त 1993 को अपने प्रतिवेदन में बता चुके थे कि नाम बदलने के लिए ग्राम पंचायत प्रस्ताव पारित कर चुकी है। पत्र में खास तौर पर यह भी लिखा था - ग्राम का नाम बदलना ग्रामवासियों को स्वीकार है। वह चाहते हैं जल्द नाम बदल दिया जाए। ऐसा करने से गांव में तनाव की स्थिति भी नहीं होगी। बैरसिया विधायक विष्णु खत्री बताते हैं- हमने साल 2008 में भी प्रस्ताव भेजा था। राज्य सरकार ने सहमति दे दी थी, लेकिन तत्कालीन यूपीए सरकार ने एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) नहीं दी। 2014 में फिर से केंद्र सरकार से एनओसी मांगी। सर्वे ऑफ इंडिया ने जुलाई 2021 में और गृह मंत्रालय ने बीते साल सितंबर में अपनी एनओसी जारी की थी। प्रदेश सरकार से इस्लाम नगर के नए नाम जगदीशपुर का गजट नोटिफिकेशन जारी करने को कहा था, इसके बाद सरकार ने नोटिफिकेशन जारी कर दिया।

भोपाल से 14 किलोमीटर दूर ऐतिहासिक धरोहर को समेटे है खूबसूरत गांव। 17वीं शताब्दी में बने किले को देखने यहां देश-दुनिया के लोग पहुंचते हैं। कल यानी बुधवार तक इसका नाम इस्लाम नगर था। अब यह फिर से अपने पुराने नाम जगदीशपुर से पहचाना जाएगा

केंद्र सरकार ने गांव का नाम जगदीशपुर करने की हरी झंडी दे दी है। राज्य सरकार ने भी बुधवार को नोटिफिकेशन जारी कर गांव का नाम बदलकर जगदीशपुर कर दिया है।
जगदीशपुर से इस्लाम नगर बनने की रोंगटे खड़ी करने वाली कहानी है। औरंगजेब की सेना के भगोड़े सैनिक दोस्त मोहम्मद खान ने 308 साल पहले इसका नाम इस्लाम नगर किया था। इसका नाम वापस जगदीशपुर करने की फाइलें 30 साल से चल रही थी।

जाने भोपाल का इतिहास..

14वीं ई. में जगदीशपुर (इस्लामनगर) पर गोंड राजाओं का शासन था। 1715 में, अंतिम गोंड राजा नरसिंह देव थे। उन्होंने भोपाल शाही एडी 1476 से 1533 तक लगभग 60 वर्षों तक शासन किया। गोंड समुदाय के पहले धार्मिक गुरु परी कुपार लिंगो बाबा ने पांच देव सागा समाज के लिए बैरागढ़ तय किया। तभी से बैरागढ़ से हजारों किलोमीटर दूर रहने वाले गोंडवाना समाज के लोग बैरागढ़ में बड़ा देव की पूजा करने आते हैं। यह गोंडों का सबसे बड़ा देवस्थल है।

भोपाल से 14 किलोमीटर दूर ऐतिहासिक धरोहर को समेटे है खूबसूरत गांव। 17वीं शताब्दी में बने किले को देखने यहां देश-दुनिया के लोग पहुंचते हैं। कल यानी बुधवार तक इसका नाम इस्लाम नगर था। अब यह फिर से अपने पुराने नाम जगदीशपुर से पहचाना जाएगा। केंद्र सरकार ने गांव का नाम जगदीशपुर करने की हरी झंडी दे दी है। राज्य सरकार ने भी बुधवार को नोटिफिकेशन जारी कर गांव का नाम बदलकर जगदीशपुर कर दिया है।  जगदीशपुर से इस्लाम नगर बनने की रोंगटे खड़ी करने वाली कहानी है। औरंगजेब की सेना के भगोड़े सैनिक दोस्त मोहम्मद खान ने 308 साल पहले इसका नाम इस्लाम नगर किया था। इसका नाम वापस जगदीशपुर करने की फाइलें 30 साल से चल रही थी।  पहले जानते हैं जगदीशपुर कैसे इस्लाम नगर बना… दोस्त मोहम्मद खान मंगलगढ़ का खजाना लेकर बैरसिया आया था  दोस्त मोहम्मद अफगानिस्तान के खैबर के तीराह का रहने वाला था। 1696 में वह उत्तर प्रदेश के जलालाबाद आ गया। वह इतना क्रोधी स्वभाव का था कि छोटी सी बात पर हुए झगड़े में उसे ही शरण देने वाले अमीर जलाल खान के दामाद को सरेआम मार डाला। वहां से भागकर वह करनाल और फिर दिल्ली चला गया। यहां मुगल सेना में भर्ती हो गया। मुगल और मराठा युद्ध के चलते दोस्त मोहम्मद 1703 में मालवा आ गया। यहां उसने अपने हथियार आदि विदिशा के शासक मोहम्मद फारूख के पास जमा कर दिए और मामूली झगड़े के बाद उसकी भी हत्या कर दी। इसके बाद वह मंगलगढ़ में शरण पाने में सफल हो गया और वहां के महाराज-महारानी के साथ महल में रहने लगा मंगलगढ़ के महाराज की मृत्यु हो जाने पर दोस्त मोहम्मद ने मंगलगढ़ को भी लूट लिया और सारा खजाना लेकर बैरसिया आ गया। यहां भी अपने स्वभाव के अनुरूप उसने यहां के सूबेदार ताज मोहम्मद से पहले तो बैरसिया को लीज पर लिया और बाद में उसे भी धोखा देकर बैरसिया पर कब्जा जमा लिया।  अब बात जगदीशपुर पर कब्जे की…इतना खून बहा कि नदी का पानी लाल हो गया..  जगदीशपुर में 11वीं सदी के परमार कालीन मंदिर के पत्थर और मूर्तियां मिलती हैं। सम्भव है कि यहां परमार काल में मंदिर रहे होंगे। परमारों के उपरांत यह क्षेत्र गढ़ा-मंडला जबलपुर के गोंड राजा संग्राम शाह के बावन गढ़ों में से एक था, इसलिए यहां पर एक गोंड महल भी है। गोंड शासन के बाद यह गढ़ और किला देवड़ा राजपूतों के अधीन रहा। 1715 में दोस्त मोहम्मद खान ने जगदीशपुर पर आक्रमण किया, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। राजपूतों पर आक्रमण में असफल रहे दोस्त मोहम्मद ने अपने स्वभाव के अनुरूप षड्यंत्र का सहारा लिया। उसने राजपूत शासक देवरा चौहान को बेस नदी के किनारे सहभोज के लिए बुलाया। जब सभी देवरा चौहान समेत राजपूत मेहमान रात्रिभोज कर रहे थे, तभी तम्बू की रस्सियां काट दी गईं और सभी राजपूतों को हलाल कर दिया गया। कहते हैं कि इतना खून बहा कि नदी का पानी लाल हो गया और तभी से यह नदी हलाली के नाम से जानी जाने लगी। इस तरह धोखे से जगदीशपुर पर दोस्त मोहम्मद ने कब्जा कर लिया और उसका नाम बदलकर इस्लामनगर कर दिया।  (जैसा धरोहर संस्था की आर्कियोलॉजिस्ट पूजा सक्सेना ने बताया)  Photo..  इस्लाम नगर में हो चुकी हैं कई फिल्मों की शूटिंग इस गांव का बॉलीवुड से भी कनेक्शन है। किले के कारण यहां कई छोटी-बड़ी फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है। इनमें भूमि पेडनेकर की फिल्म ‘दुर्गामति’ प्रमुख है। इस फिल्म के पोस्टर में अभिनेत्री को जिस दरवाजे के सामने बैठा दिखाया गया है, वह गोंड महल का मुख्य गेट है।  चारों ओर सुरक्षा दीवार, किले में रहती थीं रानी इस्लाम नगर किले को घेर कर चारों तरफ से सुरक्षा दीवार बनी हुई है। इसे देखने के लिए पर्यटकों को मप्र सरकार के बनाए गए काउंटर से 10 रुपए प्रतिव्यक्ति का टिकट लेना होता है। पहले रानी महल है। प्राचीन समय में यहां पर रानी रहा करती थीं। इसके पास में चमन महल है। दोनों महलों के बीच सुंदर बगीचे देखते ही बनते हैं। किले के पीछे की तरफ नदी है, जिसका पानी प्रदूषित होकर काला हो चुका है। चमन महल के पीछे की ओर दोस्त मोहम्मद खां के दो बेटे यार मोहम्मद खां और हयात मोहम्मद खां का मकबरा है।  स्वागत बोर्ड आज भी जगदीशपुर का ही लगा है भोपाल के पास स्थिति यह गांव बैरसिया से सूखी सेवनिया के रास्ते विदिशा जाने वाले हाईवे के बाईं ओर है। सड़क पर दो बड़े बोर्ड लगे हैं, एक बोर्ड पर विधायक की तस्वीर के साथ लिखा है जगदीशपुर में आपका स्वागत है। दूसरा बोर्ड पर्यटन विकास निगम का है, जिस पर इस्लाम नगर की दूरी लिखी है। गांव की ओर दो किलोमीटर बढ़ने पर 17वीं शताब्दी में बना एक किला दिखता है, जो इस गांव की पहचान है। वर्तमान में यह पुरातत्व विभाग के अंडर में है। यह गांव किले के अंदर तीन हिस्सों में बसा है। किले का बाहरी हिस्सा छावनी है। इसके बाद मिडिल फोर्ट और कोर किला एरिया है। गांव में मकान दूर- दूर बने हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार इस्लाम नगर की आबादी साढ़े तीन हजार है।  नाम बदलने को लेकर गांव में भी चर्चा है। वन विभाग से रिटायर्ड मनोहर जैन किराने की दुकान चलाते हैं। जगदीशपुर का जिक्र करते ही कहते हैं- यही तो इसकी पहचान है। गांव के सभी लोगों की यही इच्छा थी कि पुरानी पहचान लौटे। गांव वाले भी चाहते थे जल्द नाम बदले, तनाव की स्थिति भी नहीं हालांकि गांव का नाम बदलने को लेकर सरकारी फाइलें 30 साल से चल रही थीं। एक सरकारी चिट्‌ठी के मुताबिक हूजूर तहसीलदार 19 अगस्त 1993 को अपने प्रतिवेदन में बता चुके थे कि नाम बदलने के लिए ग्राम पंचायत प्रस्ताव पारित कर चुकी है। पत्र में खास तौर पर यह भी लिखा था - ग्राम का नाम बदलना ग्रामवासियों को स्वीकार है। वह चाहते हैं जल्द नाम बदल दिया जाए। ऐसा करने से गांव में तनाव की स्थिति भी नहीं होगी। बैरसिया विधायक विष्णु खत्री बताते हैं- हमने साल 2008 में भी प्रस्ताव भेजा था। राज्य सरकार ने सहमति दे दी थी, लेकिन तत्कालीन यूपीए सरकार ने एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) नहीं दी। 2014 में फिर से केंद्र सरकार से एनओसी मांगी। सर्वे ऑफ इंडिया ने जुलाई 2021 में और गृह मंत्रालय ने बीते साल सितंबर में अपनी एनओसी जारी की थी। प्रदेश सरकार से इस्लाम नगर के नए नाम जगदीशपुर का गजट नोटिफिकेशन जारी करने को कहा था, इसके बाद सरकार ने नोटिफिकेशन जारी कर दिया।

16वीं सदी में भोपाल से 55 किलोमीटर दूर 750 गांवों को मिलाकर गिन्नौरगढ़ राज्य का निर्माण हुआ जो देहलावाड़ी के पास था। इसके राजा सूरज सिंह शाह (सलाम) थे। उसका पुत्र निजामशाह था जो बड़ा वीर, निडर और हर क्षेत्र में निपुण था।

राजधानी के सबसे प्राचीन ऐतिहासिक गांव इस्लाम नगर का नाम भले ही 308 वर्ष बाद फिर जगदीशपुर होने वाला है, लेकिन वह अब भी अपने वैभव को दोबारा से पाने के लिए इंतजार कर रहा है। 
भोपाल नगर के निर्माता राजा भूपाल शाह गोंड 

==================================

भूपाल शाह गोंड के परिवार के सदस्य, जगदीश सिंग गोंड के नाम पर ,इस नगर का निर्माण किया गया था 
आज भी यहां ,मुगल आगमन के पहले के गोंडवाना कालीन  किले महल जिन्हें , टूरिस्ट देखने आते हैं 
308 साल पहले , मुगलों ने इस पर कब्जा कर इसका नाम , जगदीश पुर गोंड  से बदल कर  - इस्लाम नगर कर दिया था
स्थानीय समाज के 30 साल के प्रयास का परिणाम है, इस्लाम नगर का नाम फिर से जगदीश पुर किया गया है
स्थान - जगदीश पुर जिला भोपाल तहसील हूजूर , मध्य प्रदेश
इस्लाम नगर में ऐतिहासिक धरोहरें स्थापित हैं, जिनमें रानी महल, चमन महल और गोंड महल शामिल है। रानी और चमन महल की तो पुरातत्व विभाग द्वारा समय -समय पर देखरेख की जाती है, जिससे यह पर्यटकों के लिए दर्शनीय बने हुए हैं। वहीं गोंड महल में विभाग द्वारा मरम्मत कार्य तो कराया गया, लेकिन वह अब भी अपने वैभव को नहीं पा सका है। गोंड महल का वैभव लौटने पर ही इस्लामनगर असल जगदीशपुर होगा। इतिहासकारों की मानें तो गोंड महल 11वीं सदी के समय का है, यहां पर मंदिर-मूर्तियों के अवशेष मिलते हैं। इस तरह यह महल गोंड शासकों की यादें समेटे हुए है।
इतिहासकार ने बताया कि भोपाल के समीप स्थित चमन, रानी और गोंड महल कई खासियतों को समेटे हुए हैं। अनेक जगहों पर किले, महल पहाड़ियों पर बने हुए हैं, लेकिन यह किले समतल भूमि पर बने हुए हैं। इनकी खासियत यह है कि सुरक्षा के इंतजाम चारों तरफ से नदी और नहरों के द्वारा किए गए हैं। यह जल सुरक्षा का घेरा गोंड शासन काल का ही है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि पुरातत्व विभाग ने रानी और चमन महल के साथ ही गोंड महल को भी संरक्षित किया था। विभाग ने रानी और चमन महल में तो समय-समय पर मरम्मत कार्य कराया, लेकिन गोंड महल पर ज्यादा ध्यान नहीं गया। इस वजह से इसकी रौनक चली गई और यह एक खंडहर में तब्दील होता चला गया। नतीजतन इसके चारों तरफ दीवार उठाकर इसके मुख्य द्वार पर ताला डालकर बंद कर दिया है। इस महल के बारे में यहां आने वाले पर्यटक भी कम ही जानते हैं। यहां तक की असामाजिक तत्वों ने इस महल का मुख्य मार्ग पर लगा सूचना बोर्ड तक हटा दिया है।

प्राचीन गोंड महल का लौटे वैभव तो होगा असल जगदीशपुर..

जगदीशपुर में गोंड शासकों की यादें समेटे हुए हैं ऐतिहासिक धरोहरें। 11वीं सदी के समय का है गोंड महल।

सबसे प्राचीन ऐतिहासिक गांव इस्लाम नगर का नाम भले ही 308 वर्ष बाद फिर जगदीशपुर होने वाला है, लेकिन वह अब भी अपने वैभव को दोबारा से पाने के लिए इंतजार कर रहा है। इस्लाम नगर में ऐतिहासिक धरोहरें स्थापित हैं, जिनमें रानी महल, चमन महल और गोंड महल शामिल है। रानी और चमन महल की तो पुरातत्व विभाग द्वारा समय -समय पर देखरेख की जाती है, जिससे यह पर्यटकों के लिए दर्शनीय बने हुए हैं। वहीं गोंड महल में विभाग द्वारा मरम्मत कार्य तो कराया गया, लेकिन वह अब भी अपने वैभव को नहीं पा सका है। गोंड महल का वैभव लौटने पर ही इस्लामनगर असल जगदीशपुर होगा। इतिहासकारों की मानें तो गोंड महल 11वीं सदी के समय का है, यहां पर मंदिर-मूर्तियों के अवशेष मिलते हैं। इस तरह यह महल गोंड शासकों की यादें समेटे हुए है।

मंदिर के मिलते हैं अवशेष, मूर्तियां महल के बाहर रखीं..

यह तब की बात है, जब गढ़ा मंडला जबलपुर में राजा सग्राम शाह का शासन था। उनके बाद राजपूत का शासन रहा, इन्हीं के शासन के समय से ही दोस्त मोहम्मद खान ने इसे अपने धीन करने की कोशिश शुरू कर दी थी। उसने वर्ष 1718 में जगदीशपुर पर अपना शासन कर लिया था और इसका नाम बदलकर इस्लामनगर रख दिया था। यह काफी पुराना किला है, दोस्त मोहम्मद खान के बेटे को हैदराबाद के निजाम ने उठा लिया था। उसने हैदराबाद का चिह्न यहां लगाने की शर्त पर बेटे को छोड़ा था। इस घटना के बाद ही महल के ऊपर दो मछली का चिह्न आज भी बना हुआ है।

समतल भूमि पर बना किला बेहद खास..

इतिहासकार ने बताया कि भोपाल के समीप स्थित चमन, रानी और गोंड महल कई खासियतों को समेटे हुए हैं। अनेक जगहों पर किले, महल पहाड़ियों पर बने हुए हैं, लेकिन यह किले समतल भूमि पर बने हुए हैं। इनकी खासियत यह है कि सुरक्षा के इंतजाम चारों तरफ से नदी और नहरों के द्वारा किए गए हैं। यह जल सुरक्षा का घेरा गोंड शासन काल का ही है।

चहारदीवारी उठाकर कर दिया बंद, पर्यटक अब भी अंजान..

स्थानीय लोगों का कहना है कि पुरातत्व विभाग ने रानी और चमन महल के साथ ही गोंड महल को भी संरक्षित किया था। विभाग ने रानी और चमन महल में तो समय-समय पर मरम्मत कार्य कराया, लेकिन गोंड महल पर ज्यादा ध्यान नहीं गया। इस वजह से इसकी रौनक चली गई और यह एक खंडहर में तब्दील हैं.

पहले जानते हैं जगदीशपुर कैसे इस्लाम नगर बना…

दोस्त मोहम्मद खान मंगलगढ़ का खजाना लेकर बैरसिया आया था, दोस्त मोहम्मद अफगानिस्तान के खैबर के तीराह का रहने वाला था। 1696 में वह उत्तर प्रदेश के जलालाबाद आ गया। वह इतना क्रोधी स्वभाव का था कि छोटी सी बात पर हुए झगड़े में उसे ही शरण देने वाले अमीर जलाल खान के दामाद को सरेआम मार डाला। वहां से भागकर वह करनाल और फिर दिल्ली चला गया। यहां मुगल सेना में भर्ती हो गया।
मुगल और मराठा युद्ध के चलते दोस्त मोहम्मद 1703 में मालवा आ गया। यहां उसने अपने हथियार आदि विदिशा के शासक मोहम्मद फारूख के पास जमा कर दिए और मामूली झगड़े के बाद उसकी भी हत्या कर दी। इसके बाद वह मंगलगढ़ में शरण पाने में सफल हो गया और वहां के महाराज-महारानी के साथ महल में रहने लगा
मंगलगढ़ के महाराज की मृत्यु हो जाने पर दोस्त मोहम्मद ने मंगलगढ़ को भी लूट लिया और सारा खजाना लेकर बैरसिया आ गया। यहां भी अपने स्वभाव के अनुरूप उसने यहां के सूबेदार ताज मोहम्मद से पहले तो बैरसिया को लीज पर लिया और बाद में उसे भी धोखा देकर बैरसिया पर कब्जा जमा लिया।

अब बात जगदीशपुर पर कब्जे की…इतना खून बहा कि नदी का पानी लाल हो गया..

जगदीशपुर में 11वीं सदी के परमार कालीन मंदिर के पत्थर और मूर्तियां मिलती हैं। सम्भव है कि यहां परमार काल में मंदिर रहे होंगे। परमारों के उपरांत यह क्षेत्र गढ़ा-मंडला जबलपुर के गोंड राजा संग्राम शाह के बावन गढ़ों में से एक था, इसलिए यहां पर एक गोंड महल भी है। गोंड शासन के बाद यह गढ़ और किला देवड़ा राजपूतों के अधीन रहा। 1715 में दोस्त मोहम्मद खान ने जगदीशपुर पर आक्रमण किया, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली।
राजपूतों पर आक्रमण में असफल रहे दोस्त मोहम्मद ने अपने स्वभाव के अनुरूप षड्यंत्र का सहारा लिया। उसने राजपूत शासक देवरा चौहान को बेस नदी के किनारे सहभोज के लिए बुलाया। जब सभी देवरा चौहान समेत राजपूत मेहमान रात्रिभोज कर रहे थे, तभी तम्बू की रस्सियां काट दी गईं और सभी राजपूतों को हलाल कर दिया गया।
कहते हैं कि इतना खून बहा कि नदी का पानी लाल हो गया और तभी से यह नदी हलाली के नाम से जानी जाने लगी। इस तरह धोखे से जगदीशपुर पर दोस्त मोहम्मद ने कब्जा कर लिया और उसका नाम बदलकर इस्लामनगर कर दिया।

(जैसा धरोहर संस्था की आर्कियोलॉजिस्ट पूजा सक्सेना ने बताया)

राजपूतों पर आक्रमण में असफल रहे दोस्त मोहम्मद ने अपने स्वभाव के अनुरूप षड्यंत्र का सहारा लिया। उसने राजपूत शासक देवरा चौहान को बेस नदी के किनारे सहभोज के लिए बुलाया। जब सभी देवरा चौहान समेत राजपूत मेहमान रात्रिभोज कर रहे थे, तभी तम्बू की रस्सियां काट दी गईं और सभी राजपूतों को हलाल कर दिया गया। कहते हैं कि इतना खून बहा कि नदी का पानी लाल हो गया और तभी से यह नदी हलाली के नाम से जानी जाने लगी। इस तरह धोखे से जगदीशपुर पर दोस्त मोहम्मद ने कब्जा कर लिया और उसका नाम बदलकर इस्लामनगर कर दिया। (जैसा धरोहर संस्था की आर्कियोलॉजिस्ट पूजा सक्सेना ने बताया)

इस्लाम नगर में हो चुकी हैं कई फिल्मों की शूटिंग..

इस गांव का बॉलीवुड से भी कनेक्शन है। किले के कारण यहां कई छोटी-बड़ी फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है। इनमें भूमि पेडनेकर की फिल्म ‘दुर्गामति’ प्रमुख है। 

इस गांव का बॉलीवुड से भी कनेक्शन है। किले के कारण यहां कई छोटी-बड़ी फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है। इनमें भूमि पेडनेकर की फिल्म ‘दुर्गामति’ प्रमुख है।इस फिल्म के पोस्टर में अभिनेत्री को जिस दरवाजे के सामने बैठा दिखाया गया है, वह गोंड महल का मुख्य गेट है।

इस फिल्म के पोस्टर में अभिनेत्री को जिस दरवाजे के सामने बैठा दिखाया गया है, वह गोंड महल का मुख्य गेट है।

चारों ओर सुरक्षा दीवार, किले में रहती थीं रानी..

इस्लाम नगर किले को घेर कर चारों तरफ से सुरक्षा दीवार बनी हुई है। इसे देखने के लिए पर्यटकों को मप्र सरकार के बनाए गए काउंटर से 10 रुपए प्रतिव्यक्ति का टिकट लेना होता है। पहले रानी महल है। प्राचीन समय में यहां पर रानी रहा करती थीं। इसके पास में चमन महल है। दोनों महलों के बीच सुंदर बगीचे देखते ही बनते हैं।

इस्लाम नगर किले को घेर कर चारों तरफ से सुरक्षा दीवार बनी हुई है। इसे देखने के लिए पर्यटकों को मप्र सरकार के बनाए गए काउंटर से 10 रुपए प्रतिव्यक्ति का टिकट लेना होता है। पहले रानी महल है। प्राचीन समय में यहां पर रानी रहा करती थीं। इसके पास में चमन महल है। दोनों महलों के बीच सुंदर बगीचे देखते ही बनते हैं।किले के पीछे की तरफ नदी है, जिसका पानी प्रदूषित होकर काला हो चुका है। चमन महल के पीछे की ओर दोस्त मोहम्मद खां के दो बेटे यार मोहम्मद खां और हयात मोहम्मद खां का मकबरा है।

किले के पीछे की तरफ नदी है, जिसका पानी प्रदूषित होकर काला हो चुका है। चमन महल के पीछे की ओर दोस्त मोहम्मद खां के दो बेटे यार मोहम्मद खां और हयात मोहम्मद खां का मकबरा है।

स्वागत बोर्ड आज भी जगदीशपुर का ही लगा है..

भोपाल के पास स्थिति यह गांव बैरसिया से सूखी सेवनिया के रास्ते विदिशा जाने वाले हाईवे के बाईं ओर है। सड़क पर दो बड़े बोर्ड लगे हैं, एक बोर्ड पर विधायक की तस्वीर के साथ लिखा है जगदीशपुर में आपका स्वागत है।
दूसरा बोर्ड पर्यटन विकास निगम का है, जिस पर इस्लाम नगर की दूरी लिखी है। गांव की ओर दो किलोमीटर बढ़ने पर 17वीं शताब्दी में बना एक किला दिखता है, जो इस गांव की पहचान है। वर्तमान में यह पुरातत्व विभाग के अंडर में है।
यह गांव किले के अंदर तीन हिस्सों में बसा है। किले का बाहरी हिस्सा छावनी है। इसके बाद मिडिल फोर्ट और कोर किला एरिया है। गांव में मकान दूर- दूर बने हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार इस्लाम नगर की आबादी साढ़े तीन हजार है।
नाम बदलने को लेकर गांव में भी चर्चा है। वन विभाग से रिटायर्ड मनोहर जैन किराने की दुकान चलाते हैं। जगदीशपुर का जिक्र करते ही कहते हैं- यही तो इसकी पहचान है। गांव के सभी लोगों की यही इच्छा थी कि पुरानी पहचान लौटे।

गांव वाले भी चाहते थे जल्द नाम बदले, तनाव की स्थिति भी नहीं..

हालांकि गांव का नाम बदलने को लेकर सरकारी फाइलें 30 साल से चल रही थीं। एक सरकारी चिट्‌ठी के मुताबिक हूजूर तहसीलदार 19 अगस्त 1993 को अपने प्रतिवेदन में बता चुके थे कि नाम बदलने के लिए ग्राम पंचायत प्रस्ताव पारित कर चुकी है। 

पत्र में खास तौर पर यह भी लिखा था - ग्राम का नाम बदलना ग्रामवासियों को स्वीकार है। वह चाहते हैं जल्द नाम बदल दिया जाए। ऐसा करने से गांव में तनाव की स्थिति भी नहीं होगी। बैरसिया विधायक विष्णु खत्री बताते हैं- हमने साल 2008 में भी प्रस्ताव भेजा था। राज्य सरकार ने सहमति दे दी थी, लेकिन तत्कालीन यूपीए सरकार ने एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) नहीं दी। 2014 में फिर से केंद्र सरकार से एनओसी मांगी। सर्वे ऑफ इंडिया ने जुलाई 2021 में और गृह मंत्रालय ने बीते साल सितंबर में अपनी एनओसी जारी की थी। प्रदेश सरकार से इस्लाम नगर के नए नाम जगदीशपुर का गजट नोटिफिकेशन जारी करने को कहा था, इसके बाद सरकार ने नोटिफिकेशन जारी कर दिया।

पत्र में खास तौर पर यह भी लिखा था - ग्राम का नाम बदलना ग्रामवासियों को स्वीकार है। वह चाहते हैं जल्द नाम बदल दिया जाए। ऐसा करने से गांव में तनाव की स्थिति भी नहीं होगी।

बैरसिया विधायक विष्णु खत्री बताते हैं- हमने साल 2008 में भी प्रस्ताव भेजा था। राज्य सरकार ने सहमति दे दी थी, लेकिन तत्कालीन यूपीए सरकार ने एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) नहीं दी। 2014 में फिर से केंद्र सरकार से एनओसी मांगी। सर्वे ऑफ इंडिया ने जुलाई 2021 में और गृह मंत्रालय ने बीते साल सितंबर में अपनी एनओसी जारी की थी। प्रदेश सरकार से इस्लाम नगर के नए नाम जगदीशपुर का गजट नोटिफिकेशन जारी करने को कहा था, इसके बाद सरकार ने नोटिफिकेशन जारी कर दिया।

बैरसिया विधायक विष्णु खत्री बताते हैं- हमने साल 2008 में भी प्रस्ताव भेजा था। राज्य सरकार ने सहमति दे दी थी, लेकिन तत्कालीन यूपीए सरकार ने एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) नहीं दी। 2014 में फिर से केंद्र सरकार से एनओसी मांगी। सर्वे ऑफ इंडिया ने जुलाई 2021 में और गृह मंत्रालय ने बीते साल सितंबर में अपनी एनओसी जारी की थी। प्रदेश सरकार से इस्लाम नगर के नए नाम जगदीशपुर का गजट नोटिफिकेशन जारी करने को कहा था, इसके बाद सरकार ने नोटिफिकेशन जारी कर दिया।

#suradailynews

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ