सलकनपुर धाम गोंड राजाओ की कुलदेवी मध्यप्रदेश

Salkanpur Dham Kuldevi of Gond kings Madhya Pradesh

भोपाल. MP के सीहोर जिले( Sehore District ) में है सलकनपुर नामक गांव। यहां स्थित 1000 फीट ऊंची पहाड़ी पर विराजमान है बिजासन देवी(Vijasen Devi Mandir)। यह देवी मां दुर्गा का अवतार हैं। देवी मां का यह मंदिर MP की राजधानी भोपाल(Bhopal) से 75 किमी दूर है। वहीं यह पहाड़ी मां नर्मदा से 15 किलोमीटर दूर स्थित है। इस मंदिर पर पहुंचने के लिए भक्तों को 1400 सीढ़ियों का रास्ता पार करना पड़ता है। जबकि इस पहाड़ी पर जाने के लिए कुछ वर्षों में सड़क मार्ग (Road Marg) भी बना दिया गया है। यहां पर दो पहिया और चार पहिया वाहन से पहुंचा जा सकता है। यह रास्ता करीब साढ़े 4 किलोमीटर लंबा है। इसके अलावा दर्शनार्थियों के लिए रोप-वे भी शुरू हो गया है, जिसकी मदद से यहां 5 मिनट में पहुंचा जा सकता है शुरू से ही लोगों के मन में मां विजयासन धाम(Vijyasan Dham) की उत्पत्ति, प्राकट्य, मंदिर निर्माण को लेकर जिज्ञाषा रही है। कुछ पंडितो का कहना है कि यहां मां का आसन गिरने से यह विजयासन धाम बना लेकिन विजय शब्द का योग कैसे हुआ, इसका सटीक उत्तर वे नही दे पाएं है। लेकिन हम आपको बता दे कि मां विजायासन धाम के प्राकट्य का का सटीक उत्तर व उल्लेख श्रीमद् भागवत महापुराण में है। जो इस प्रकार है-

सलकनपुर मंदिर..

श्रीमद् भागवत कथा के अनुसार(According to Shrimad Bhagwat Katha) जब रक्तबीज(raktbeej daitya) नामक देत्य से त्रस्त होकर जब देवता देवी की शरण में पहुंचे। तो देवी ने विकराल रूप धारण कर लिया। और इसी स्थान पर रक्तबीज का संहार कर उस पर विजय पाई। मां भगवति की इस विजय पर देवताओं ने जो आसन दिया, वही विजयासन धाम के नाम से विख्यात हुआ। मां का यह रूप विजयासन देवी कहलाया।

आज भी इस स्थान की पूरी पड़ताल नहीं हो पाई है देवी की प्रतिमा का प्राकट्य, गुफ़ा की लंबाई, शिलालेख, गोंड राजाओं(gond raja) का राज्य और उनकी लोहे से सोना बनाने की कला आज भी रहस्य हैं। यहाँ प्रतिदिन सैकड़ों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं और नवरात्र में ये संख्या लाखों में पहुँच जाती है। इसके अलावा प्रतिवर्ष यहाँ माघ के महीने में भव्य मेला लगता है जो की देखते ही बनता है.

स्थापना : सलकनपुर का मां विजयासन धाम प्रसिद्ध शक्तिपीठों में शामिल है। इसकी स्थापना का समय स्पष्ट रूप से नहीं पता लेकिन इतना ज्ञात है कि इस मंदिर का निर्माण 1100 ई. के करीब गौंड राजाओं द्वारा किला गिन्नौरगढ़(Ginnoregarh fort) निर्माण के दौरान करवाया गया था। प्रसिद्ध संत भद्रानंद स्वामी ने मां विजयासन धाम में कठोर तपस्या की। उन्होंने नल योगिनियों की स्थापना कर क्षेत्र को सिद्ध शक्तिपीठ बनाया था। लाखों भक्त इस तपस्या स्थली पर पहुंचते हैं और मन्नत मांगते हैं।

विशेषता : कहा जाता है कि राक्षस रक्तबीज के वध के बाद माता जिस स्थान पर बैठी थीं, उसी स्थान को विजयासन के रूप में जाना जाता है। इसी पहाड़ी पर सैकड़ों जगहों पर रक्तबीज से युद्ध के अवशेष नजर आते हैं। नवरात्र में इस स्थान पर लाखों श्रद्धालु मन्नत पूरी होने पर चढ़ावा-चढ़ाने, जमाल चोटी उतारने और तुलादान कराने पहुंचते हैं। परिसर सर्वसुविधायुक्त है।

वास्तुकला : दक्षिणमुखी पाषाण मूर्ति है। मूर्ति के सामने भैरव जी स्थापित हैं।

यहां है : जिला मुख्यालय सीहोर से 80 किमी दूर रेहटी तहसील में।

ऐसे पहुंचे : रेल मार्ग से भोपाल से 75 किमी की दूरी पर है। होशंगाबाद से 40 किमी की दूरी पर, इंदौर से 180 किमी और सीहोर से 90 किमी की दूरी पर बस द्वारा मां विजयासन धाम पहुंचा जा सकता है..

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